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Vinoba Vichar Pravah

  • Writer: Madhusudan
    Madhusudan
  • Aug 27, 2020
  • 2 min read

40 days of flow of thoughts, reflections and learnings from the life of Vinoba Bhave. A heartfelt initiative by Ramesh Bhai and Sanjay Bhai, it bought for the first time in online space, sisters of Pavnar ashram and many elders who have either lived, worked or inspired by the life of Vinoba. More : https://www.facebook.com/vinoba125y

Below is my sharing and learnings from Vinoba


Posted by Madhusudan Agrawal on Tuesday, August 18, 2020

जब आप दिल से कोई काम करना चाहते हैं तो पूरा ब्रह्मांड मदद करता है। धन कमाना या व्यापार करना मेरा स्वभाव नहीं रहा इसलिए मैंने उसे नहीं चुना बल्कि ऐसे कार्य किए जिनसे आंतरिक प्रसन्नता हासिल करने में मुझे मदद मिली। मेरी पढ़ाई और दक्षता मेरी आजीविका बन सकती थी लेकिन ज़िंदा रहना सब कुछ नहीं, जीवित रहना महत्वपूर्ण है। जीवित रहना यानि सार्थक जीवन व्यतीत करना, खुद को बदलना और सत्य की खोज करना है। मेरा अतीत जो भी था, मैंने अपने दिल की बात सुनी और अपना वर्तमान व्यवस्थित कर रहा हूँ। सबसे बड़ी चुनौती है- देने का भाव विकसित करना। पेड़ में फल होते हैं, फल देते समय वह पात्र-कुपात्र का चयन नहीं करता। वह केवल देने में विश्वास करता है। इसी प्रकार अगर हम मदद करते समय न्यायाधीश बन जाएंगे तो हम सबकी मदद नहीं कर पाएंगे और प्रेम विकसित नहीं होगा। जीवन देने में ही है, हो सकता है कि बुद्धू बन जाएँ, बुद्धू बनकर बुद्ध बनेंगे। जब हम सत्य से जुड़ेंगे तब प्रेम से जुड़ेंगे। सबसे मैत्रीभाव बनाना ही जीवन का लक्ष्य है, मैं उसी ढंग से दूसरे के हृदय में प्रवेश कर सकता हूँ। जब हम किसी से मिलें तो नमक की तरह मिल जाए। सब्जी-दाल में नमक रहता है तो उसकी उपस्थिति का भान नहीं होता लेकिन जब नमक नहीं रहता तब उसका तुरंत ख्याल आता है। मित्र ही इसी तरह बनना है कि आपका होना महत्वपूर्ण न लगे पर आपका न होना आपकी याद दिलाए। इसी ढंग से स्वयं का व्यक्ति-निर्माण होता है। (Translated by Dwarika Agrawal Ji)

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